Saturday, December 13, 2014

Nowadays thoughts of people

आज के दोहे ::

��नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात.
       बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात.
��प्रेम भाव सब मिट गया, टूटे रीति-रिवाज.
       मोल नहीं सम्बन्ध का, पैसा सिर का ताज.
�� भाई-भाई में हुआ, अब कुछ ऐसा वैर.
       रिश्ते टूटे खून के, प्यारे लगते गैर.
��दगा वक़्त पर दे गए, रिश्ते थे जो खास.
      यारो अब कैसे करे, गैरों पर विश्वास.
��अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल
      बोझ समझ माँ-बाप को, घर से रहा निकाल.
��होठों पर कुछ और था, मन में था कुछ और.
      मित्रों के व्यवहार ने, दिया हमें झकझोर.
��अपनी ख्वाहिश भी यही, मिले किसी का प्यार.
     हमने देखा हर जगह, रिश्तों में व्यापार.
��झूठी थी कसमें सभी, झूठा था इकरार.
     वो हमको छलता रहा, हम समझे है प्यार.
��साथ हमारा तज गए, मन के थे जो मीत.
      अब  कैसे लिखे, मधुर प्रेम के गीत.
��माँ की ममता बिक रही, बिके पिता का प्यार.
      मिलते हैं बाज़ार में, वफ़ा बेचते यार.
��पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज.
      कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज.
��प्रेम, आस्था, त्याग अब, बीत युग की बात.
      बच्चे भी करने लगे, मात-पिता से घात.
��भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास.
     बहन पराई हो गयी, साली खासमखास.
��जीवन सस्ता  हो गया, बढे धरा के दाम.
     इंच-इंच पर हो रहा, भ्रातों में संग्राम.
��वफ़ा रही ना हीर सी, ना रांझे सी प्रीत.
      लूटन को घर यार का, बनते हैं अब मीत.
��तार-तार रिश्ते हुए, ऐसा बढ़ा जनून. 
      सरे आम होने लगा, मानवता का खून.
��मंदिर, मस्जिद, चर्च पर, पहरे दें दरबान.
      गुंडों से डरने लगे, कलयुग के भगवान.
��कुर्सी पर नेता लड़ें, रोटी पर इंसान.
     मंदिर खातिर लड़ रहे, कोर्ट में भगवान.
��मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश.
      बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश.
��बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान.
      पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान.
��भगवा चोला धार कर, करते खोटे काम.
       मन में तो रावण बसा, मुख से बोलें राम.
��लोप धरम का हो गया, बढ़ा पाप का भार.
     केशव भी लेते नहीं, कलियुग में अवतार.
��करें दिखावा भगति का, फैलाएं पाखंड.
     मन का हर कोना बुझा, घर में ज्योति अखंड.
��पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग.
      मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग.
��फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर.
     पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर.
��धरम करम की आड़ ले, करते हैं व्यापार.
     फोटो, माला, पुस्तकें, बेचें बंदनवार.
��लेकर ज्ञान उधार का, बने फिरे विद्वान्.
    पापी, कामी भी कहें, अब खुद को भगवान
��पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप.
     भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप.
��मंदिर, मस्जिद, चर्च में, हुआ नहीं टकराव.
    पंडित, मुल्ला कर रहे, आये दिन पथराव.
��टूटी अपनी आस्था, बिखर गया विश्वास.
    मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश.
��पत्थर को हरी मान कर, पूज रहे नादान.
    नर नारायण तज रहे, फुटपाथों पर प्राण.
��खींचे जिसने उमरभर, अबलाओं के चीर.
    वो भी अब कहने लगे, खुद को सिद्ध फकीर.
��तन पर भगवा सज रहा, मन में पलता भोग.
     कसम वफ़ा की खा रहे, बिकने वालेोग.

"गलतफहमी 'खा' गई बड़ो-बड़ो को... फिर आपकी और हमारी 'हस्ती' क्या..."

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