शिव लिंग पूजा का राज जुडा है उत्तरकाण्ड से
शिव की यागीश्वर में तपस्या
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जैसे के आपको ज्ञात होगा और कथा आपने सुनी होगी !
जब दक्ष्य प्रजापति ने कनखल के समीप यज्ञ किया था ! यहाँ पर शिव के अतिरिक्त सबको इस यज्ञ में बुलाया गया था! शिव की अर्धांगिनी पार्वती जो जब यह पता चला और अपने पति के तिरस्कार को देखकर वो वो कनखल जाकर यज्ञ के हवन में कूद पड़ी और देह त्याग कर दिया !
शिव ने कैलाश के यह बात जान दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंश कर सबका नाश कर दिया! और की भस्म को आच्छादित कर झाकर सैम (अल्मोड़ा जिले में स्थिति) में तपस्या की! झाकर सैम को तब से देवदारु वन के आच्छादित बताया है ! झाकर सैम जागीश्वर पर्वत में है !
कुमाउ के इस पर्वत में वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नियों सहित रहते थे ! एक दिन ऋषि ने पत्नियों ने कुशा और व समिधा एकत्र करते हुए शिव को रख मले हुए नगनवस्था में तपस्या करते देखा ! गले में साप की माला थी और आँखे बंद, मौन धारण किये हुए, चित उनका काली (पत्नी) के शोक में संतप्त था! ऋषि के सित्र्याँ उनके सौंदर्य को देखकर उनके चारो और एकत्र हो गयी!
सप्त ऋषियों की की सातो स्त्रियाँ जब रात में न लौटी तो प्रातः काल वे दूदने को गए ! देखा, तो शिव समाधि लिए है, और स्त्रियाँ उनके चारो और बेहोश पड़ी है
ऋषियों का शिव को शाप देना
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यह देख कर ऋषियों के मन में विचार आया की शिव ने उनकी स्त्रियों की बेजज्ती की है, शिव को शाप दिया "जिस इन्द्रय यानी जिस वस्तु से तुमने यह अनौचित्य किया है, वह लिंग) भूमि में गिर जाय "!
तब शिव ने कहा "
"तुमने मुझे आकरण शाप दिया है, लेकिन तुमने मुझे संकित अवस्था में पाया है, इस लिए में तुमारे शाप का विरोध नहीं करूँगा ! मेरा लिंग धरती पर गिरेगा और तुम सातो सप्त ऋषि के रूप में आकाश में चमकोगे" अतः शिव ने शाप के अनुसार अपने लिंग को धरती में गिराया !
सारी धरती शिव
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